ग़ज़ल :-हौसले की उड़ान है बाकी
और कुछ इत्मीनान है बाकी ,
रास्तों में ढलान है बाकी |
कील कांटे सलीब बिकने लगे ,
कौन ईसा महान है बाकी |
परकटा देख परिंदा बोला ,
हौसले की उड़ान है बाकी |
एक मुद्दत से निशाने पर हूँ ,
तीर चढ़ना कमान है बाकी |
देख ली आज भारतीय संसद ,
और कोई दुकान है बाकी |
घर तो कबके गये हैं टूट सभी ,
सबका अपना मकान है बाकी |
गोली नाथू चला रहा अब तक ,
तो भी गाँधी में जान है बाकी |
गांव में चिमनियां उग आई हैं ,
मुश्किलों में सीवान है बाकी |
है ज़हर में बुझा हरेक दाना ,
खेत में क्यों मचान है बाकी |
और कुछ इत्मीनान है बाकी ,
ReplyDeleteरास्तों में ढलान है बाकी |
देख ली आज भारतीय संसद ,
और कोई दुकान है बाकी |
कितनी पैनी-धारदार है ये लेखनी....
अल्लाह करे तौफ़ीक-ए-बयां और ज़ियादा... :-)