बोलते चेहरों को सुनता ही रहा ,
वो अदद एक ख्वाब बुनता ही रहा |
बादलों और बिजलियों की नेमतें ,
बारिशों की बूँद चुनता ही रहा |
गीत के मुखड़े पे चर्चा खूब की ,
अंतरे चुपचाप गुनता ही रहा |
हर ग़ज़ल मेरी उदासी का किला ,
शेर दीवारों में चुनता ही रहा |
क्या कहूँ जबसे हूँ आया शहर में ,
गाँव की चाहत में घुनता ही रहा |
ज़िन्दगी रुई के फाहों की तरह ,
सांस की तारों से धुनता ही रहा |
चाहतों की आग थी जलती रही ,
दिल मेरा खामोश भुनता ही रहा |
- अभिनव अरुण
{ 25082012 }