गज़ल : गिनती के अशआर
झूठ से इसको नफरत सी है सच्चाई को प्यार कहे ,
मेरा दिल तो जब भी बोले दो और दो को चार कहे |
मर खप कर एक बाप जुटाता बेटी का दहेज ,
लेने वाले की बेशर्मी वो इसको उपहार कहे |
भ्रष्टाचार घोटालों के पहियों पर रेंग रही ,
लानत है उस शख्स पे जो इसको सरकार कहे |
जैसी करनी वैसी भरनी अब नहीं दीखता है ,
हम कैसे इस बात को माने कहने को संसार कहे |
मूंगे मोती मेवे से चाहे भर दो जितना ,
सागर से आयी हर मछली जार को जार कहे |
हमें आईना दिखलाते हैं गिनती के अशआर ,
यूं तो बीते एक दशक में हमने शेर हज़ार कहे |