Monday, May 9, 2011

ग़ज़ल:- कुबड़े काने राजा के फरमान बहुत हैं



ग़ज़ल:- कुबड़े काने राजा के फरमान बहुत हैं

अपने शहर में झूठ के चर्चे आम बहुत हैं ,
सच कहने वालों के सर इलज़ाम बहुत हैं |

इस अखबार के हर पन्ने पर लूट खसोट ,
तुम कहते हो दुनिया में इंसान बहुत हैं |

जिस लड़की को नुक्कड़ पर तुमने था छेड़ा ,
उस लड़की के पापा अब परेशान बहुत हैं |

सच्चाई की आदर्शों की अलख जगाते ,
ऐसे कवि को मिलते कहाँ इनाम बहुत हैं |

एक मुनादी आज सुबह इस शहर में घूमी ,
कुबड़े काने राजा के फरमान बहुत हैं |

No comments:

Post a Comment