Friday, March 25, 2011

ग़ज़ल :-हस्बे मामूल मै रोशन ज़रा शमा कर लूं


ग़ज़ल :-हस्बे मामूल मै रोशन ज़रा शमा कर लूं
वक्त वीरान है निशानियां फ़ना कर लूं ,
अपना घर आप जलाने का हौसला कर लूं |

आपकी बज़्म में अशआर कई लाया हूँ ,
हस्बे मामूल मै रोशन ज़रा शमा कर लूं |

जिन तजुर्बों ने मुझे शायरी सिखायी है ,
वक्ते रुखसत खुशी से उन्हें विदा कर लूं |

टाँक दूं झीळ से बदन पे चांदनी का लिबास ,
सुबह से पेश्तर चाहूँ गुनाह इतना कर लूं |

गो कि कुछ लोग मेरे मरने की दुआ में हैं ,
मुझको मोहलत दे खुदा उनको मै सजदा कर लूं |

अब तो चेहरों पे कई चेहरे लगे हैं या रब ,
किसको बेगाना करूँ किसको मैं अपना कर लूं |

1 comment:

  1. गो कि कुछ लोग मेरे मरने की दुआ में हैं ,
    मुझको मोहलत दे खुदा उनको मै सजदा कर लूं |

    अरुण जी, आप इतनी सादा-शफ़्फ़ाकबयानी पर तो ये नामुराद दुआ करने वाले भी शरमा जाएं...!
    इतनी सुन्दर गज़ल के लिये मुबारकबाद.......

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