ग़ज़ल :- सच के व्यापार में नफा क्या है
चार पैसा उसे हुआ क्या है
पूछता फिर रहा खुदा क्या है |
हर जगह तो यही करप्शन है
रोग बढ़ता गया दवा क्या है |
तुम ही रक्खो ये नारे वादे सब
पांच वर्षों का झुनझुना क्या है |
तेरे जाने पर अब ये जाना माँ
बद्दुआ क्या है और दुआ क्या है |
हम मलंगों से पूछकर देखो
सच के व्यापार में नफा क्या है |
और बढ़ जाती है व्यथा मेरी
जब कोई पूछता कथा क्या है |
वक्त रुकता कहाँ किसी के लिये
दुश्मनी ही सही जता क्या है |
ज़िंदगी मौत का साया है तू
साथ जितना भी है निभा क्या है |
अब तो मंदिर भी लूटे जाते हैं
याचना से यहाँ मिला क्या है |
No comments:
Post a Comment