Wednesday, March 2, 2011

ग़ज़ल :- सच के व्यापार में नफा क्या है



ग़ज़ल :- सच के व्यापार में नफा क्या है
चार पैसा उसे हुआ क्या है
पूछता फिर रहा खुदा क्या है |

हर जगह तो यही करप्शन है
रोग बढ़ता गया दवा क्या है |

तुम ही रक्खो ये नारे वादे सब
पांच वर्षों का झुनझुना क्या है |

तेरे जाने पर अब ये जाना माँ
बद्दुआ क्या है और दुआ क्या है |

हम मलंगों से पूछकर देखो
सच के व्यापार में नफा क्या है |

और बढ़ जाती है व्यथा मेरी
जब कोई पूछता कथा क्या है |

वक्त रुकता कहाँ किसी के लिये
दुश्मनी ही सही जता क्या है |

ज़िंदगी मौत का साया है तू
साथ जितना भी है निभा क्या है |

अब तो मंदिर भी लूटे जाते हैं
याचना से यहाँ मिला क्या है |

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